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________________ हम्मीरायण हम्मीर महाकाव्य १, जयत्तिगदे का पुत्र (१) जैत्रसिंह के पुत्र हम्मीरदेव ने गद्दी पर - हम्मीर दे जब रणथंभोर बैठते ही दिग्विजय का निश्चय किया और मालवा, में राज्य कर रहा था, मलखान के विद्रोही सर मेवाड़, आबू, बदनोर, अजमेर, सांभर, मरोठ, खंडेला, दार महिमासाहि और चम्पा, ककराला, तिहुनगढ़ आदि पर विजय प्राप्त कर मीरगामरू ने हम्मीर की रणथम्भोर वापस आया। तदनन्तर उसने कोटि यज्ञ शरण ली। महाजनों ने किया और पुरोहित के कहने पर एक मास का मौनउनके व्यय आदि को __ व्रत धारण किया। उसी समय उल्लूखान को अलाध्यान में रखते हुए राजा उद्दीन ने कहा, 'रणथम्भोर का राजा हमें कर दिया को उन्हें निकाल देने की सलाह दी। किन्तु राजा करता था। उसका पुत्र हम्मीर तो हम से बात भी ने इस पर ध्यान न दिया। नहीं करता। इस समय वह व्रत में स्थित है। तुम इस पर अलूखान बहुत बड़ी जाकर उसके देश का विनाश करो” (सर्ग ९,१-१०४) सेना लेकर रणथम्भोर पर चढ़ आया। (१८-६६) (२) अलुखान की चुप- (२) उल्लूखान बनास के किनारे पहुँचा। चाप चढाई का किसी को घाटी के अन्दर घुसने में अपने को असमर्थ पाकर वह पता न शान्ति ने वहीं ठहरा । सेनापति भीमसिंह और मन्त्री धर्मसिंह में भाग्यवशात् जाजा ने उसकी फौज पर आक्रमण किया। मुसलमानी देवड़ा भी वहीं आ उतरा फौज हारी। इधर-उधर लूटपाट कर धर्मसिंह तो रणजहाँ अलूखान की कुछ थम्भोर की ओर लौट गया। किन्तु दर्रे में प्रवेश सेना का पड़ाव था। करती समय भीमसिंह के सिपाहियों ने मुसलमानों से जाजा ने उसकी सेना छीने हुए नगारों को बजा डाला। उसे अपनी जय को नष्ट किया और खबर का संकेत समझकर तितर-बितर हुए मुसलमानी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003823
Book TitleHammirayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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