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(३५) "यह सुनकर ]
राजा ने अपने आप ही
अपना गला काट डाला ।"
३६. उसने मांगा कि
रणमल, रायपाल तथा गढ़
के कोठारी की खाल एक अंगूठा मोटी निकलवा ली
जाय ।
( २३ )
(३५) पद्यांश यह है :
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राव पवाडउ कोयउ भलउ आपणही सारयउ जै गलउ ॥२९३॥
राजा ने यह बड़ा पवाड़ा किया कि अपने ही
हाथ अपना गला काट डाला ।
'पवाड़ा' के अर्थ पर हमने आगे विचार किया है । ( ३६ ) यह अर्थ संगत नहीं कहा जा सकता । मनुष्य की खाल और एक अंगूठा मोटी ? वह गैंडा तो नहीं है । 'अंगूठा थकी का अभिप्रेत अर्थ 'अंगूठा मोटी' न होकर अंगूठे तक की ( अर्थात् समस्त शरीर की ) खाल है । अंग्रेजी में इसे Flaying alive कहते हैं ।
हम्मीर महाकाव्य से तुलना
हम्मीर महाकाव्य में भी हम्मीर की कथा का विशद वर्णन है । हम्मीरायण का रचना समय सं० १५३८ है । हम्मीर महाकाव्य की रचना ग्वालियर के तंबर : राजा वीरम के समय हुई, जिसकी ज्ञात निश्चित तिथियाँ सं० १४५८ और. १४७९ हैं ( तारीख मुबारकशाही, १७७; प्रशस्ति संग्रह, महावीर ग्रन्थमाला, द्वितीय पुष्प, जयपुर, पृ० १७३, पंक्ति २४ ) । हम्मीर महाकाव्य में हम्मीर की सब जीवनी का वर्णन है, उसकी जानकारी कुछ अधिक परिपूर्ण और प्राचीन: आधारों पर आश्रित प्रतीत होती है । अलाउद्दीन से संघर्ष के बारे में दी हुई, दोनों काव्यों की सूचनाओं में जो अन्तर है, उसे कोष्टक रूप में इम इस प्रकार प्रस्तुत कर सकते हैं :
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