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पहिले उन्होंने रिण ( की खाई ) को लकड़ी से भरा ; किन्तु उसे ( हम्मीर के ) सैनिकों ने बला डाला। (फिर ) सब सेना को आज्ञा हुई 'उस स्थान पर बालू डलवाओ' सूथण ( पायजामे ) की पोटली बांध बांध कर मीर और मलिक बालू भर कर लाते। गढ के घेरने वाले कोई युद्ध न कर रहे थे। सभी पोटली में बालू ला रहे थे।"
गुप्त जी की भूल का कारण यहां बेलु का अर्थ बालू न करके ब्यालु ( भोजन ) समझना है जिससे वे दुरर्थ कर सके हैं अन्यथा यहाँ भोजन और सीधा सामान का प्रसंग ही क्या था ? यह शाही सेना थी, न कि भोजनमट्ट ब्राह्मणों की मंडली, जो सीधा सामान उठा कर चली गई।
फरिश्ता ने 'रिण की खाई' नाम देकर सब घटना का वर्णन किया है। इसामी की फुतू हुस् सलातीन
और हम्मीर महाकाव्यादि से सब कथा पढ़ी जा सकती है।
२०, चउपई का अंश यह है :'राउ आगलि नित पालउ पड़ई' (२०३)
यहां राजा पाल पर नहीं आता। उसके सामने 'पाल' पड़ता है। 'पाला' का अर्थ 'अखाड़ा' है; सम्भवतः 'पाला पड़ना' यहाँ 'मजलिस लगने के अर्थ
२०. इसके बाद राजा नित्य पाल पर आता।
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