________________
( १८
।
२१. धीरे-धीरे छठ्ठा २१ पद्यांश निम्नोक्त है :महीना समाप्त हो गया छटई मासि संपूरण मस्यउ, ते देखी लोक मनि डस्यउ और गढ़ के लोग चिन्ताः
कोसीसइ जइ पहुता हाथ, तुरका तणी समी छइ बाच्छ
। तुर हो उठे (२००) 'हम्मीर भी चिन्तित हुआ
२०० और उसने गढ़ देवता से राय हमीर चिंतातुर हूयउ, रिण पूस्यउ दुर्ग हिव गयउ युद्ध का परिणाम जानना गढ देवति लही परमाथ,आणी कुंची दीधी हाथि २०१ चाहा (२०१)
इसमें रिण के पूरा भर जाने पर गढ़ के कोसीसों तक हाथ पहुँचने लगे जिससे हम्मीर चिन्तातुर हुआ। गढ के अधिष्ठातृ देव ने परमार्थ ( वास्तविक स्थिति ) को समझ कर हम्मीर के हाथ में चाभी दी। राय ने तब बारीउघाड़ी और अधिष्ठातृ देव की माया से पानी बह निकला। पानी से बालू बह गई, वह झोल फिर
खाली हो गया। - २२ 'बार वर्ष ( या २२. 'या वर्ष दिन' अर्थ के लिए यहां कोई वर्ष दिन ?) हो गए। अवकाश नहीं है। युद्ध का समय चउपई २१२,
२१६, और २१० में 'बार वरिस' है। चाहे युद्ध इतना न चला हो, हम्मीरायण के लिए यही अर्थ उपयुक्त है। मल्ल के २१ वें कवित्त में भी युद्ध का काल 'वरिस दुवादस' है। इससे 'बार' का ठीक
अर्थ स्पष्ट है। २३ 'जीमने में वह
२३ जीमने में पैरों के पास बिठाने में कौन संमान हमें अपने पैरों के पास विठाता है।'
है ? पद्यांश यह है :
'
'
२
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org