SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 25
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अर्थ-विषयक कुछ मतभेद इम इस प्रस्तावना को प्रायः समाप्त कर चुके थे। उस समय श्री अगरचन्दजी नाहटा से हमें 'इमीर दे चउपई' पर हिन्दुस्तानी ( १९६०, जनवरी-मार्च ) में प्रकाशित डॉ. माताप्रसाद गुप्त का लेख मिला । डा. गुप्त ने हम्मीरायण की कथा पर काफी रोशनी डाली है, जिस अर्थ पर हम पहुँचे हैं और जो अर्थ डा० गुप्त ने दिया है, उनमें अनेकशः पर्याप्त मतभेद है। अतः कुछ और लिखने से पूर्व उन स्थलां पर कुछ विचार करने के लिए हम विवश हुए हैं। कथा के सत्यासत्य की परीक्षा उसका अर्थ निश्चित होने पर ही हो सकती है । डा० माताप्रसाद कृत अर्थ प्रस्तावित अर्थ और सुझाव (१) “वह (कवि) अपने (१) कश्यपराज का पुत्र भानु है । उन श्री सूर्य को काश्यप राव का पुत्र को मैं सविधान प्रणाम करता हूँ।" हम ऊपर बता माण बताता है।" चुके हैं कि कवि का नाम 'भाड', भाडउ या 'भाण्डउ' व्यास है। (२) “गढ़ के परकोटे (२) चौपाई इस प्रकार है :में चार प्रमुख पोलियां कोटि जिसो हुवइ इन्द विमाण, थी और प्रत्येक पौली पर च्यारि पोलि तिणि कोटि प्रधान । नौलखी चंद्रिका होती पोलि चंडि नवलखीज होइ, चउरासी चहुटा नितु जोइ ॥९॥ इसमें प्रत्येक पोली पर नौलखी चद्रिका होती थी । ऐसा अर्थ तो इसमें कहीं दिखाई नहीं पड़ता। वास्तव में नौलखी तो एक पोली विशेष है जो अब भी इस नाम से प्रसिद्ध है। थी।" Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003823
Book TitleHammirayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy