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(३) "राजा का आवास त्रैलोक्य-मंदिर का नाम का था, ओर गढ़ के परकोटे में एक अलंकृत पौली थी जिसके बीच में एक त्रुटित रणस्तंभ था।"
(३) चौपाई इस प्रकार हैं :
त्रैलोक्यमंदिर राय आवास, सीला ऊन्हा धवलहरि पासि । भूखी पोलि अछइ तिणि कोटि, रिणनइ थंभ विचइ छइ त्रोटि ॥१७॥
यहाँ डा० गुप्त और अधिक चुके हैं। त्रैलोक्यमन्दिर एक प्रासाद विशेष की संज्ञा है। ऐसी ही संज्ञाएँ बीकानेर और राणकपुर के त्रैलोक्य-दीपक प्रासादों में भी अनुसन्धेय हैं। किन्तु इम डा० गुप्त के पहले पंक्ति के अर्थ को यथा तथा ठीक भी मान लें। तो भी दूसरी पंक्ति के अर्थ से सहमत होना तो असम्भव है। यह समझ में नहीं आता कि “पौलिके बीच में त्रुटिन रणस्तंम” की कल्पना ही वे कैसे कर चुके ? वास्तव में “रण” दुर्ग की निकटस्थ प्रसिद्ध पहाड़ी है जिसका उल्लेख प्रायः सभी इतिहासकारों ने किया है । 'स्तम्भ से वह पहाड़ अभिप्रेत है जिस पर दुर्ग है। इनके बीच में गहरा खड्ड है ( देखें आगे हमारा रणथंभोर का भौगोलिक वृत्त)। कवि ने इसी तथ्य को 'रिण नइ थम्म बिचइ छइ त्रोटि' कह कर प्रकटित किया है। रिण का नाम 'चउपई' में आगे भी हैं।
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