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________________ ७ विदा मांगता हुआ जब हम्मीर कोठारों में गया तो उन्हें भरा पाया । किन्तु उसे अब जीने की इच्छा न रही थी । उस समय वीरमदे, हम्मीर दे, मीर और महिमासादि, भाट और पाहुणा जाजा केवल ये व्यक्ति दुर्ग में बर्तमान थे । उचित स्थान पर अपनी अन्त्येष्ठि और दोनों मीरों को दफनाने का काम हम्मीर ने भाट को सौंपा। सबसे पहले मीरों ने, फिर देवड़ा जाजा ने और उसके बाद वीरम ने युद्ध किया । हम्मीर ने अपने हाथों ही अपना गला काटा । "यह सब संसार जानता है कि संवत् १३७१ ज्येष्ठ अष्टमी शनिवार के दिन राजा मरा और गढ़ टूटा।" सुबह रणझेत्र में बादशाह पहुँचा। उसने रणमल से पूछा, 'इनमें तुम्हारा साहिब कौन है ?" मद से मस्त उस अँधे ने पैर से राव को दिखलाया। उसी समय नव्ह भाट ने हम्मीर की विरुदावली का उच्चारण किया और अलाउद्दीन की भी प्रशंसा की। उसने एक एक सिर दिखा कर सब वीरों का वर्णन किया । ' रणथंभौर जलहरी है, जिसमें हम्मीर शिव स्थान पर वर्तमान है । वइजलदे ? 'देवड़ा जाजा' ने उस सहिब की अपने शिर से पूजा की है। यह राजा का बन्धुवर वीरमदे है । यह तुम्हारे घर के मीर महिमासाहि और गामरू हैं । वह शरणागतों की रक्षा करन वाला हम्मीर है । बादशाह ने नाल्ह भाट को मुंहमांगा दान मांगने को कहा । नाव्ह ने स्वामिद्रोहियों के घात की प्रार्थना की। सुल्तान ने रणमल, रायपाल और कोठारी की अँगूठे तक खाल निकलवा डाली । माट प्रसन्न हुआ । राजपूतों को दाग दिया, दोनों मीरों को दफनाया, और राजा को गङ्गा में प्रवाहित किया और फिर भाट की प्रार्थनानुसार उसे भी मरवा दिया भाटने हम्मीर का बदला लेकर अपना नाम रखा ।' 'भाण्ड' ने "यह कथा सोमवार के दिन कार्तिक सुदी सप्तमी, संवत् १५३८ के दिन कही ( पद्य ३२५ )” Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003823
Book TitleHammirayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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