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________________ पाठान्तर ६६ १५६ चालुंक न नु इ, गाढिम, जि-करि, दृढ, रिणथंभ दुग्ग लग्गतयह, हिव लभ्भइ पट्टतरउ । १५७ रिणिथंभउरि हम्मीरदे, केणि । १५८ बेउ, (इम) कहइ राय हम्मीर | १५६ तो सरिखा म्हारइ घणा, सेव करइ निसदीस | हूं हमीर कहियइ इसउ, तोइ नमामऊ सीस ॥ १५६ ॥ १६० नइ सांचियउ, राय चहुआण, करां । १६१ आगलि, घणउ, तुम्ह = अम्ह, तणउ । १६२ तण, न्हाल | १६३ चौपाई उदयपुर वाली प्रति में नहीं है : १६४ न्हाल, ज दी, तदितिहां १६५ इ. इस दोहेके उत्तरार्द्ध के बदले में उदयपुर की प्रति में इससे ऊपर वाले दोहे का उत्तरार्द्ध दिया है । १६६ से १७३ तक पद्धड़ी छन्द के बदले उदयपुर वाली प्रति में 'चपई' लिखा है, तथा पाठान्तर भी अधिक हैं एवं ५ के बदले ४ छंद यहां दिये जाते हैं, उदयपुर की प्रति में १७२ व पद्यांक नहीं है । सिंदा, विंदा महिमा जाणि, कछवाहा मोरी मंकुआण । वारड़ बोडाणा अति भूझार; वाला वघेला मिल्या अपार १६२ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003823
Book TitleHammirayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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