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पाठान्तर
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१५६ चालुंक न नु इ, गाढिम, जि-करि, दृढ, रिणथंभ दुग्ग लग्गतयह, हिव लभ्भइ पट्टतरउ ।
१५७ रिणिथंभउरि हम्मीरदे, केणि ।
१५८ बेउ, (इम) कहइ राय हम्मीर |
१५६ तो सरिखा म्हारइ घणा, सेव करइ निसदीस | हूं हमीर कहियइ इसउ, तोइ नमामऊ सीस ॥ १५६ ॥
१६० नइ सांचियउ, राय चहुआण, करां ।
१६१ आगलि, घणउ, तुम्ह = अम्ह, तणउ ।
१६२ तण, न्हाल |
१६३ चौपाई उदयपुर वाली प्रति में नहीं है :
१६४ न्हाल, ज दी, तदितिहां
१६५ इ. इस दोहेके उत्तरार्द्ध के बदले में उदयपुर की प्रति में इससे ऊपर वाले दोहे का उत्तरार्द्ध दिया है ।
१६६ से १७३ तक पद्धड़ी छन्द के बदले उदयपुर वाली प्रति में 'चपई' लिखा है, तथा पाठान्तर भी अधिक हैं एवं ५ के बदले ४ छंद यहां दिये जाते हैं, उदयपुर की प्रति में १७२ व पद्यांक नहीं है ।
सिंदा, विंदा महिमा जाणि, कछवाहा मोरी मंकुआण । वारड़ बोडाणा अति भूझार; वाला वघेला मिल्या अपार १६२
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