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हम्मीरायण उदयपुर की प्रति में नं० १३७, १३८, १३६ तीन पद्य नहीं है। १४० आसिस दियइ, जैत्र हुई, खिसउ, तू हमीरदे चहुवाण । १४१ सहुअइ मिली, वधावउ आपणउ, भरी भरी अंखियाण १४२ सुलितान, परधाना नइ जुगती जाण । १४३ तेड़इ सुलिताण, द्यउ, सांभलि राउल तीरइ जाउ, पूछउ, १४४ गयउ गढ माहि, भेटियउ उछाहि, ०कीधउ पाहुणा
पणउ।
१४५ जायउ, जेत्र, इतु-तू, रक्ष्या । १४६ निसुणि इहां। १४७ जे बेऊ तरणि, सइंवर, ती । १४८ राव, बारहट नइ, आविस्यइ, विदेसि । १४६ मोल्ह, कही सुणी न । १५० घणा, तोनइ, अधिकउ द्यइ, मंडाव्य, सांभरि तू केणि। १५१ मोल्ह, हुंत । १५२ जइ इन, होस्यइ। १५३ मोलह ! वरी, तउं लेइ, अग्नि जो। १५४ तइ। १५५ वोलावियउ, भाट जाइ नइ । इसके बाद की गाथा उदयपुर वाली प्रति में नहीं है :
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