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युद्ध चालू रखा किन्तु साथ ही में गढ़ को लेने के अन्य उपाय भी सोचने लगा।
हम्मीर एक दिन सिंहासन पर बैठा हुआ युद्ध देख रहा था । महिमासाहि भी वहीं था। वह चाहता तो बादशाह को अपने बाण का निशाना बना लेता, किन्तु हम्मीर के मना करने पर उसने केवल अलाउद्दीन के सातों राजछत्र काट डा।
सुल्तान ने रणथम्भोर को हस्तगत करने का अब एक और उपाय किया। उसने रिण की 'खाई को लकड़ियों से पाटने का प्रयत्न किया । किन्तु हम्मीर के सैनिकों ने लकड़ियाँ जला दी। उसके बाद अलाउद्दीन की आज्ञा से सैनिकों ने बालू से उसे भरना शुरू किया। बालू से बीच का स्थान भरने पर उसके सैनिकों के हाथ गढ़ के कंगूरों तक पहुँचने लगे। हमीर चिन्तातुर हुआ। किन्तु गढ़ के अधिष्ठाता देव की कृपा से ऐसा पानी आया कि सब बालू बह गई ।
गढ़ में फिर आनन्द होने लगा। धारू और वारू नाम की वेश्याएँ ऐसा नृत्य करती की उसकी समाप्ति सुल्तान को पीठ दिखाकर होती । सुल्तान ने महिमासाहि के चाचा को बन्दी कर लिया था। उसने बन्धन से मुक्त होकर एक ही तीर से उन दोनों वेश्याओं को मार गिराया । बादशाह ने उसे बहुत इनाम दिया। ... बारह वर्ष तक युद्ध चलता रहा। अन्त में सुल्तान ने सन्धि की बातचीत आरम्भ की। रायपाल और रणमल को अत्यन्त विश्वस्य समझ कर हम्मीर ने सुल्तान के पास भेजा। अभी तक उनके पास आधी बून्दी की जागीर थी। पूरी बून्दी की प्राप्ति का आश्वासन मिलने पर इन दुष्ट
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