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________________ बहुत अच्छी जागीर भी दी। महाजनों ने इस नीति की कटु आलोचना की। किन्तु हम्मीर ने उनकी सलाह पर ध्यान न दिया। ___ उल्लूखाँ को जब ये समाचार मिले, तो उसने अत्यन्त क्रुद्ध होकर हम्मीर पर चढ़ाई को कानों कान किसी को खबर भी न लगी। किन्तु अकस्मात् ‘जाजउ' देवड़ा उधर से आ निकला। उसने कुछ मुसलमानी सेना नष्ट की और हम्मीर को रणथंभोर पहुँच कर खबर भी दी। फलतः जब उल्लूखाँ हीराघाट पहुंचा, हम्मीर मुठभेड़ के लिए तैयार था । हम्मीर, महिमासाहि, मीर गामरू और हम्मीर के राजपूतों से पराजित हकर उल्लूखां मैदान से भाग निकला। अलाउद्दीन को जब यह सूचना मिली तो उसने सब सेना एकत्रित कर रणथंभोर को आ घेरा, और मोल्हाभाट को दूत के रूप में भेज कर हम्मीर को कहलाया कि वह राजकुमारी देवलदे, धारु और वारू वेश्याओं, अनेक गढ़ों और हाथियों को बादशाह की नजर करें। दोनों मीर भाइयों की विशेष रूप में मांग थी। इनके बदले में सुल्तान हम्मीर को मांडू, उज्जयिनी आदि देने के लिए उद्यत था । किन्तु इम्मीर तो एक दर्भाग्र भूमि भी देने के लिए तैयार न हुआ। मोल्हा ने कीर्ति और लक्ष्मी रूपी दो कन्याओं को हम्मीर के सामने प्रस्तुत किया था। हम्मीर ने कीर्ति को वरण करना ही उचित समझा। हम्मीर के पत्र के उत्तर में दाहिमा, कछवाहा, भाटी आदि छत्तीस राजकुलों के लोग रणथम्भोर में आकर एकत्रित हो गए। महिमासाहि के नेतृत्व में शाही सेना पर आक्रमण कर उन्होंने निसरखान को मार डाला। अनेक दूसरे मीर भी मारे गए। गढ़ में खूब उत्सव हुआ। बादशाह ने Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003823
Book TitleHammirayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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