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હૃદ
हम्मीरायण
सुणि मध्यान हमीर, चित्त हर चरण लायै । दरवाजे सत प्रोल, ईस कू सीस चडायौ ॥ जैत सुतन जुग जुग अमर, कहै 'खेम' जस निमिल पढ्यौ । खग प्रान भेदव कालकै, सुपातिसाह गढपर चढ्यौ ॥ १७ ॥
संवत् १७०६ रा फागुन सुदि ६ शुक्र गढ़ रणथंभोर री तलहटी भाट सुखानंद ग्यासा लखाउत रा बेटा कांनै लिखायौ ।
सोलह से पचीस गिन, नवमी वदि गुरवार । जेठ मास रिणथंभ गढ, लियो अकबरसाह जलाल ॥ १ ॥
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|।*।। समाप्त ॥*॥
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