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परिशिष्ठ (४) जाजौ कहै सु जाय , जे नर जाया तिहु जांणां । माल परायौ खाय, सांई मेल्है सांकडे ॥२॥
- कवित्त :मिलौ रांणौ रायपाल, मिलौ बाहुड़ बिकसंतौ । भोज देव पिण मिलौ, मिलौ भोज रातू रतौ ।। वीरमदे पिण मिलौ, मिलौ वड राउत जाजौ। चंद सूर पिण मिलौ हीन नहि भखित राजा॥ तेतीस कोट ऊवै पिण मिलौ, अवर मिलौ महिपत दियो। हमीर कहै ए मत मिलौ स, कर करमरहै मरहियौ ॥१५॥
॥ दूहा ।। सिंघ विसन सापुरस वचन, केल फलति इकवार । त्रिया तेल हमीर हठ, चडै न दूजी वार ॥१॥
:- कवित्त :वायस विकम राव, बुद्धि विन खद्ध वयारह । अजुडं मुज कराड, रुलै दछिन भडारह । मंडल कछ भलै, सीह गुजर रै अंगणे । गंग बुड जैचंद मुओ, भिडीयौ न भयंगम । हमीर सरस हमीर किय, कर कंदल रणथंभ छल ।। अस करै न काहु करहै न कोई सु कोई राव रविचक्रतल ॥१६॥
तेरह से तेपने, माह सुद ग्यार [स] मंगल । अलावदीन छत्रपती, लीय रणथंभ करि कंदल ।।
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