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हम्मीरायण मोहि देहु गजनौ , साह मो सेवा आवौ । उलखां मो देह , पकर कर घास कटावौ ॥ नुसरतखां मो देहु, पकर कर बेडी मेलु। थटा तिलंग मोहि देह, नार मरहठी खेलं ॥ सुनि मोलण कहियो साहि सू, रामायण भारथ भिरू । कै घोर होय सुरतान की, कै हुं हमीर भूभव परू ॥६।। उस नव लख तुखार, तुझ घर एक न पूजै । उस असी अहस पायक, साहि सू कहि किम झूम ।। उस चवदहस मदगलित, तुझ घर अठै गैवर । सुनि हमीर चकवै, करै क्या मेघाबर ॥ मोलन पूछ बांहि दै, सायर थाह न बुडि है। सुरतान सिचांना तू चिरा, कहि हमीर किम उड है ॥७॥
[ बात] यूं कहिनै मोलण पतिसाह आगै जाय हकीकति कही।
- कवित्त :दे न डंड मांनै न सेव, लेनि ढिली नित घावै । ग्रहै मुछा करवर कसै, राव साम गण न्यावै ॥ मांगै उलुअखांन , नार मंग मरहठी । अरू मंग' गजनौ , रहौ चहुवांण जु हठी ।। असवार समेत विग्रह अरै, झुझुन कुसमहौ झसै । गढ़ ऊपर राव हमीरदे, दुलै चंवर हर हर हसै ॥८॥
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