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परिशिष्ट (४)
[बात ] पतिसाह मोलण वाणीया ऊपर घनै मेल्हीयो छ ।
-: कवित्त :मोलण कीयौ सलाम, निमट सै सात तुखारां ॥ चढे पै हिंदु तुरक चड, सब सैभरवारां । इम पूछ रावि हमीर, कहां ते मोल्हण आया । पतिसाह दिली नरेस, तुझ पास पठाया। उलटा समद जग प्रलै हुय, हंकि राय कोप्पा घणा । रखिब राय रखिब सकै, मैं रिणथंभवर बुडाति सुण्या ॥३॥ रे मोलण बसीठ, काय तू अणगल भखै । जै धर मारू तो माहि, त तौ कुण सरणै रखे ॥ जे दिली पतसाहि, त तौ हुं संभर राजा। जाहि फेर चकब, साहि के लुं सब बाजा ॥ असवार समेत विगह अरुं, जु न • समुहौ भिरू । कै होय घोर सुरतान की, के हमीर जूझैव परू ॥४॥ दिली आलम साह, कुमर तिस कारण दीजै। धारू वारु पातुर, अवर महिमा जु भणीजै ॥ लख्ख टका किन देहि, देहि किनि लख तुखारां । अष्ट धारु किनि देहि, जियौ चाहै इंहा वारां ।। जीव विथारै वार है, श्रग कहा पाकी बोर है । मालण कहै हमीर सुनि, मति ह मरै पतंग है।
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