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परिशष्ट (४) भाट खेम रचित राजा हम्मीरदे कवित्त
[बात ] राजा हमीरदे जैतसीयोत, जैतसी उदैसीयोत रौ। चोहवाण गढरिणथंभोर साको कियो तिणरी साख रा कवित भाट खेम कहे :मैं क्रिता अन्याव साह मारण फुरमाया। मेछै का नवलख, फोरा दिली धर आया ।। तुरक कसबै प्रोल, डंड हिंदुउपकठा । उलुखा अस भए तास बंदै दस वखां ।। जहं लग उगै अथमै कहो राय कोई सरै। मगोल कहै हमीर सुनि हम तुम सरणे उगरै ॥१॥ जांम स गढ रणथंभ, सीस जब लग धर ऊपर । जांम स ह भुज डंड, चलण है चलु बिचत्तर ।। जाम जैत वीरम, जाम जाजा वड गुजर । जाम स हय गय तुरी, संग नहि करूं अचित डर ।। गरथ देह गढ अप्पिहुं, अब किम मंथौ जाहि मोहि । हमीर कहै मंगोल सुमन, ताम न कटु आफि तोहि ॥२॥
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