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________________ परिशिष्ट (४) खिड्यौ गोड गजनौ, खिड्यौ ढिली समानौ । खिड्यौ उच मुलतांन , खिड्यौ खोखर खुरसानौ ।। खिड्यौ वंग तिलंग , खिड्यौ उवह जंगल देसां । खिड्यौ कछ काबरू, खिड्यौ ईडरउ पदेसां ।। इतरो खिड्यौ अलावदी , रणथंभौर मछड अड्यौ । हमीर राउ बिकस हंस , तिकर एक तंडी पड्यौ ।।६।। देवगिर म म जान , जान म म जादु नरवै । गुजरात म म जान , कर्ण चालुक न यह है ।। मांडोवर म म जान , सु तौ हेला स ग्रहीयौ । चीत्रोड म म जान , सुतौ कूडै कर ग्रहीयौ ।। तू अलावदीन हमीर हूं , द्रिढ कपाट आडौ खरौ। रणथंभ द्रुग लागंत ही, सु अब जानवौ पटतरौ ॥१०॥ ठयौ हमीर पेखनौ, तरण नचै राय अंगण । सीस धुनै अलावदीन , आवटै खिण खिण ।। पग नेपुरै रुण झुणे , कान सोबन तर कवर । हय गय पख्यर पडिग , चड्यौ चाहै नरवै नर । करि ग्रह कमांण गलि ग्रज कर, छत्र वेह समुहौ तरंगि । उडा न सीह पातुर हनिग, तार दत खरहर परिग ॥११॥ छत्रधार नहि भईय, सार वज्यौ सिर ऊपर । कर ग्रह रहियब डंड, जानि गोरख ध्यान धर ॥ राव रान भरि हरिग, अमर सुरतान पणठ्यो । आन तीर वंचयो, लिख्यौ महिमा सोय दिट्यौ । मन धरब रोस धारू वरै, नही हमीर भोजन कीयौ । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003823
Book TitleHammirayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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