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परिशिष्ट (२) छूट तीर पनाग मारि मन कलह न रखें, चहवांण झूझ गह भरै सोह सूरातन दखै; रिणमल मिलै दलय घटै सुकर थंभ ओरस घटै। चिख चिख लोह जाझो चडै पडै राव गढ पालटै ॥
[२१] वरिस दुवादस समर मंडै हिदुवां मूगलां, वहै रूधिर वाहला ढले नर कुंजर ढला; पूगी आस पलचरां हंस ले चली अपच्छर, हार करण कज होस सीस ले वलियो संकर; हमीर सरग दिस हल्लियो कलि ऊपर नामो करै ।
इग्यार लाख अलावदीन तैमे एक लाख दल ऊबरै ।। संवत् १७६८, मिती आसाढ वदि १२ लिखतं मुंधड़ा राजरुप देसगोक मध्ये ।
॥ इति हमीरा कवित्त ।
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