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हम्मीरायण
[ १७ ] स सेन सूरमां छणै रज अंबर छायो, धोरी धर धसमस सेस पयाल न मायो; गोरी दल हमह मिल अमंगल मेछां दल, सुर रथ संबाहि रहे अचरज्ज अणंकल; हमीर चाडि रिणथंभ छलि सुत वैजल असमर जाको जडाग तोडै तुरक हड़हड़ तिम संकर हसै ॥
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[ १६ ]
अस असं असमर असंख संख सीतल न क्यों जल, अनि अनंत भड़ भागवंत जिसा जैसिंघ अणंकल ; रहेसि धेन वन घिसेह विधियां सूरातण,
जांमवंत जुहवंत मच्छ कवि ओछ महा घण;
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....... बह दीह पयंपै लाfa बह सपड़ो........
[१६]
करे कोट जुहार सार गहीयां साऊजल, की मुख हलकार व वपधार वीजूजल; मिल लोह सूरमां हुवा भांड़ लत्थो बत्थां वाह हथ वाखाण जिसी भारथ पारत्थां ; जे चंग तणो चंद नांम जड़ि साका बंध सधीर रे । पड खेत मीर लेखै पखा रहे हाथ हमीररे ॥ [२०] atter अगणमै मास सांगण तिथ पांचम, थावरह कार सुर भड़ चढे तुरंगम;
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