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परिशिष्ट (२)
- कवित्त :रिणथंभोर रै राणै हमीर हठालै रा
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[१]
कीधा गुनह अपार, छोड दिल्ली से आए मे छीना नवलाख, साह मारण फरमाए तुरक वसैं तै पोल, दंड तहां हिंदू दखै
ओथ न करो समरत्थ, मूझ सरणागत रखै ऊगवण सूर विच आथवण, सुणो राव सांसो भयो महिमा मुगल इम उच्चरै, हूं तो सरणे आवीयो।
. [२] जां लग गढ रिणथंभ, जांम जाको वड गूजर जांम बंधव वीरम्म, तांम वलि रखां असमर मोमूसाह मुगल्ल, आव मो सरण पयट्ठो दल मेलै पतिसाह दुगम रिणथंभरि दिट्ठो बह दाम दियां सिर ऊचरां, मांगै साह स दियां मुझ हमीर कहै मूगल सुणो, तांम न अप्पां काढ तुझ
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