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वर्णवृतम् :
परिशिष्ट ( १ )
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जहा भूत वेताल णच्चंत गावांत खाए कबंधा," सिआ फारफक्कारहका रवंता फुले कण्णरंधा ; कआ टुट्ट फूट्टई मंथा कबंधा णचंता हसंता । तहा वीर हमीर संगाम मज्झे तुलंता जुता ॥ १८३ ॥
जहां भूत वेताल नाचते हैं, गाते हैं, कबंधों को खाते हैं, शृगालियाँ अत्यधिक शब्द करती चिल्लाती है, तथा उनके चिल्लाने से कानों के छिद्र फटने लगते हैं, काया टूटती है, मस्तक फूटते हैं नाचते हैं और हंसते हैं, वहां वीर हम्मीर संग्राम में तेजी से युद्ध करते हैं ।
१ क्रीड़ाचक (कीडाचंड छन्द उदाहरण
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