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परिशिष्ट (१)
४१ खुरासाण खुहिअ रण महं लंघिअ मुहिअ साअरा; हम्मीर चलिअ हारव पलिअ रिउगणह काअरा ॥ १५१ ॥ मलय का राजा भग गया, चोलपति (युद्धस्थल से ) लौट गया, गुर्जरों का मान मर्दन हो गया , मालवराज हाथियों को छोड़कर मलयगिरि में जा छिपा। खुरासाण (यवन राजा) क्षुब्ध होकर युद्ध में मूच्छित हो गया तथा समुद्र को लांघ गया ( समुद्र के पार भाग गया)। हम्मीर के ( युद्ध यात्रा के लिये ) चलने पर कातर शत्रुओं में हाहाकार होने लगा।
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लीलावती :-- घर लग्गइ अग्गि जलइ धह धह कह दिग मग णह पह अणल भरे, सव दीस पसरि पाइक्क लुलइ धणि थणहर जहण दिआव करे। भअ लुक्किअ थकिस वइरि तरुणि जण भइरव भेरिअ सद्द पले, महिलाट्टइ पट्टइ रिउसिर टुट्टइ जक्खण वीर हमीर चले ।। १६० ॥
जिस समय वीर हमीर युद्ध यात्रा के लिये रवाना हुआ है (चला है)उस समय (शत्रु राजाओं के घरों में आग लग गई है, वह धू-धू करके जलती है तथा दिशाओं का मार्ग और आकाशपथ आग से भर गया है ; उसकी पदाति सेना सब ओर फैल गई है तथा उसके डर से भगती (लोटती ) धनियों (रिपु रमणियों - धन्याओं) का स्तनभार जघन को टुकड़े-टुकड़े कर रहे हैं; वैरियों की तरुणियाँ भय से [वन में घूमती] थक कर छिप गई हैं; भेरी का
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