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________________ ४० हम्मीरायण (४) कुंडलिया : ढाल्ला मारिअ ढिल्लि महं मुच्छिअ मेच्छ सरीर । पुर जजल्ला मंतिवर चलिअ वीर हम्मीर ।। चालिअ वीर हम्मीर पाअभर मेइणि कंपइ। . दिग मग णह अंधार धूलि सूरह रह झंपइ । दिग मग णह अंधार आण खुरसाणक आल्ला । दरमरि दमसि विपक्ख मारु, ढिल्ली महं ढाल्ला ॥ १४७ ॥ दिल्ली में (जाकर) वीर हमीर ने रणदुदुभि ( युद्ध का ढोल) बजाया, जिसे सुनकर म्लेच्छों के शरीर मूच्छित हो गये। जज्जल मन्त्रिवर को आगे (कर) वीर हम्मीर विजय के लिये चला । उसके चलने पर ( सेना के ) पैर के बोझ से पृथ्वी काँपने लगी। (काँपती है ), दिशाओं के मार्ग में, आकाश में अंधेरा हो गया धूल ने सूर्य के रथ को ढंक दिया। दिशाओं में, आकाश में अंधेरा हो गया तथा खुरासान देश के ओल्ला लोग ( पकड़ कर ) ले आये गये। हे हम्मीर, तुम विपक्ष का दल मल कर दमन करते हो; तुम्हारा ढोल दिल्ली में बजाया गया। [५] भांजिअ मलअ चोलवइ णिपलिअ गंजिअ गुज्जरा , मालवराअ मलअगिरि लुक्किा परिहरि कुंजरा । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003823
Book TitleHammirayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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