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परिशिष्ट (१) प्राकृत-पंगलम् में हम्मीर सम्बन्धी पद्य
[१] गाहिणी:मुचहि सुन्दरि पाअं अप्पहि हसिऊण सुमुहि खग्गं मे।
कप्पिअ मेच्छशरीरं पच्छइ वअणाई तुम्ह धुअ हम्मीरो ॥ ७१ ॥ रण यात्रा के लिए उद्यत हम्मीर अपनी पत्नी से कह रहा है -
हे सुन्दरि, पांव छोड़ दो, हे सुमुखि हंसकर मेरे लिए ( मुझे) खङ्ग दो। म्लेच्छों के शरीर को काटकर हम्मीर निःसन्देह तुम्हारे मुख के दर्शन करेगा।
[२] रोला:
पअभरू दरमरू धरणि तरणिरह धुल्लिअ झपिअ, कमठ पिट्ठ टरपरिअ मेरू मंदर सिर कंपिअ । कोह' चलिअ हम्मीर वीर गअजूंह संजुत्ते, किअउ कठ्ठ हाकंद मुच्छि मेच्छह के पुत्ते ।। ८२ ॥ पृथ्वी ( सेना के ) पैर के बोझ से दबा ( दल ) दी गई; सूर्य का रथ धूल से ढंक (झप) गया; कमठ की पीठ तड़क गई, सुमेरू तथा मंदराचल की चोटियां कांप उठी। वीर हम्मीर हाथियों की
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