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( २ )
हम्मीरायण का रचयिता
हम्मीरायण के रचयिता के बारे में सन्देह के लिए कुछ विशेष अवकाश नहीं है । कवि ने अपना नाम पद्य ४,५१, ६०, १०६, ११४, १:७३, २२२, २४२, २४४, २८८, ३२६, आदि में 'भाड', 'भांडउ' और 'भाडउ' रूप में दिया है, जिससे स्पष्ट है कि नाम 'भाड़ा' या माण्डा रहा होगा जिसका राजस्थानी में कर्तृ - कारक के एक वचन में 'माउ' या 'माण्डउ' रूप होगा। जिस प्रकार भाण्डा के समसामयिक नृप 'बीका' को 'बीकउ' या 'बीकोजी' कहते हैं । उसी तरह हम्मीरायण के कवि को हम 'भाण्डउ' या 'भाण्डोजी' भी कहें तो ठीक होगा । हम्मीरायण के कर्त्ता व्यास थे जिनका सदा से कथा-वार्तादि कहना मुख्य व्यवसाय रहा है । अतः रामायणादि की कथा के प्रेमी 'भाण्डउ' व्यास का वीरवती हम्मीर की ओर आकृष्ट होकर 'हम्मीरायण की रचना करना स्वाभाविक था ।
afa ने अपने पिता का नाम कहीं नहीं दिया है । डा० माताप्रसाद गुप्त का यह मत कि हम्मीरायण किसी काश्यपराव के पुत्र भाण की रचना है, भ्रान्तिमूलक है । वास्तव में वे इस चउपई का अर्थ ठीक न समझ पाए हैं।
कासिपराउ तणउ पुत्र माण । श्री सूरज प्रणमउ सुविहाण | पुमि रायणि अति सुरसाल । माड गायो चरिय सुवीसाल ॥४॥
इस चौपाई का भाण तो 'भानु' या सूर्य है जो कश्यप का पुत्र है । उसी का दूसरा नाम सूर्य है । कवि उसे सुविधान से प्रणाम करता है ।
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