________________
भूमिका (हम्मीरायण का पर्यालोचन) राजस्थानी भाषा अपने वीर काव्यों के लिए सर्वत्र प्रसिद्ध हो चुकी हैं। कवि सम्राट श्री रवीन्द्रनाथ ठाकुर के शब्दों में राजस्थान ने अपने रक्त से जो साहित्य निर्माण किया है उसकी जोड़ का साहित्य और कहीं नहीं पाया जाता' किन्तु इस 'बेजोड़' साहित्य में से अभी तक कुछ रत्न ही हमारे सम्मुख आ सके हैं। वीर रस के प्रेमी अब रणमल छन्द और कान्हडदे प्रबन्ध से परिचित हैं। रतन महेसदासोत री वचनिका और अचलदास खीची री वचनिका के सुसम्पादित संस्करण भी अब हमें प्राप्य हैं। वोठू सूजा नगराजोत का 'राउ जइतसी-रउ छन्द' भी मनस्वी इटालियन विद्वान् तेसीतोरी की कृपा से मुद्रित हो चुका है। कुछ प्रकीर्णक रचनाओं का भी प्रकाशन हुआ है। किन्तु यह प्रकाशित साहित्य अप्रकाशित राजस्थानी वीर रसात्मक साहित्य का एक सामान्य अंश मात्र है। शायद ही कोई ऐसा राजस्थानी वीर हो जिसके लिये कुछ न लिखा गया हो। और हम्मीर तो राजस्थान के उन आदर्श वीरों में से हे जिसकी कीर्ति का ख्यापन कर राजस्थान का कवि समाज कुछ विशेष गौरव की अनुभूति करता रहा है। इन्हीं कवियों में 'भाण्डउ' व्यास भी हैं जिसकी कृति 'हम्मीरायण' पाठकों के सम्मुख प्रस्तुत है।
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org