________________
हम्मीरायण
(ए) खाज्यो पीज्यो विलसज्यो; धनरउ लेज्यो लाह; कवि 'भांडउ' असउ कहइ, देवा लांबी बाह;
॥ चउपई ॥
भाट नइ राय दीघउ काम, दाध दिवाड़ेइ रूड़इ ठामि; घोर घलावे बेऊ मीर, इसउ आदेश दियइ हमीर;
|| ZIET ||
संवत तेरह इकहत्तरइ, जेठ आठमि सनिवार; राउ मूवउ गढ पालट्यउ, जाणइ इणि संसारि;
२६१ थे + यह पंक्ति उदयपुर वाली प्रति में नहीं है ।
३
'जाउ' 'वीरमदे' हसमस्या, पिहिली किलर अम्हे झालिस्या; हाथ जोड़ि बे बोल मीर, अवसर हमारउ आज हमीर; म्हांथी दुख सही अति घण, नाक न नाम्यड पणि अपणड; पहिला जे तुम्ह आगलि मरां, थारा मुरंग उसांकल करां; ऊ मीर भिड़इ अति भला, मारइ कटक घणा एकला; [+ चोटी साहइ भला अइयार, छरी स्यउं खंड करइ दसवार ] भिड़इ 'देवड़उ जाजड' भलउ, वीरमंदे अति कीधउ किलड; भाट कहइ सुण महाराज, कुण नइ प्राण दिखालउ आज; राय पवाड़उ कीयउ भलऊ, आपण ही सास्थउ जे गलऊ;
२६२
Jain Educationa International
३३
For Personal and Private Use Only
२८८
२८६
२६०
२६१
२६३
२६४
www.jainelibrary.org