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हम्मीरायण
॥ दहा ॥ वीरमदे हम्मीरदे, मीर नइ महिमासाहि भाट नइ जाजउ पाहुणो, ए रहिया गढ माहि; २७८ः जमहर करी छड़उ हुयउ, हमीरदे , चहुयाण, सवालाख संभरि धणी, घोड़इ दियइ पलाण; २७६ छत्रीसइ राजाकुली, ऊलगता निसि-दीस तिणि वेला एको नहीं, उवाढउ लेवहु ईस; २८०. हाथी घोड़ा घरि हुंता, उलगाणा रा लाख; सात छत्र धरता तिहां; कोइ न साहइ वाग; २८१ नगर (लोक) मोह मेल्ही करी, घोडइ चढ्यउ हमीर; कदि ही जुहार न आवतउ, पालउ पुलिइ ति वीर; २८२. बांधव पालउ देखि करि, गहबरीयो हम्मीर; इणि घोड़इ कुण काम छइ, तिणि पालउ मुझ वीर; २८३ सइहथि घोड़उ मारि करि, पालउ चाल्यउ राउ; पगि पाहण लागइ घणा, लोही वहइ प्रवाह; २८४ महिमासाह कांधइ करइ, अम्हारा साहिब हमीर; वीरमदे वलतउ कहइ, बंधव वेलां (ह) मीर ! २८५ देव सहु मनि काल मुह, सूरिज प्रमुखज केविः तीनइ त्रिभुवन डोलिया; राय हमीर देखेवि; . २८६ (ए) खाज्यो पिज्यो विलसज्यो; ज्यां रइ संपइ होई;
मोह म करिज्यो लख्मी तणउ, अजरामर नहिं कोइ; २८७ २७६ हमीर २८० उलगता नसदीस, इस, २८३ हमीर, १८४ हमीर २८६, काल मुहा हुवा, २८७ नाही
मास
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