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हम्मीरायण
॥ चउपई ॥ धरा पीठ पड़ियउ 'हमीर', ऊभउ भाट बोलइ जई मीरः 'जाजउ' सिर सिर ऊपरि कीयउ, जाणे ईश्वर तिणि पूजीयउ; २६५ 'वीरमदे' रउ माथउ देठि, बेउ मीर पड्या पग हेठि; देवलोकि जइ बइठउ राउ, कुडि रखवालइ भाटज तेऊ; २६६ राति विहाणी हुवउ परभात, पातिसाह तिह मेल्इइ खाट; हमीरदे पड्यउ छइ जिहां, पालउ ऊपरि आव्यउ तिहां; २६७ सींगणिगुण तोड़इ सुरताण, आलम साह न खाई (न) खाण; 'रिणमल' तीरइ पूछइ पतिसाह, तुम्हारा साहिब कुण इह माहि; २६८ घणउ द्रोह आगइ तिणि कियउ, खाते पीते आकज लीयउ; मदि माता हूया जाचंध, पगस्यउ राऊ दिखालइ अंध; २६६ ए मोटउ पृथवीपति राव, भली परि झूझ्यउ तिणि ठाई; संभरिवाल सरीसउ बली, कोई न हींदू ईणइ कली; ३०० पतिसाह कुमख्यउ अति घणउ, सइ हाथि आप दियइ खापणउ; 'बिरद' नाल्ह भाट] बोलइ तिणिठाइ, पतिसाह नइ दीधी द्वाहि; ३०१ बोलइ भाट करइ कइवार, बोलइ विरद अतिहि अपारः धन जननी हमीर दे, सरणाइ वि जइ पंजरो सूरो; ३०२
तु आलम अल्लाह तु, तू अलख्ख करतार;
वाच संभालि न आपणी, उचित आपि खंदकार; ३०३ २६६ बोऊ, २६६ मनि, ३०० पति, इणइ कलि, ३०१ ठामि ३०३ अलाह,अलख
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