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________________ हम्मीरायण ॥ दूहा ॥ तइ गढ पुठि ज दीध मूहउ, तुझ पूठि न देसि कीरति नारी वरि जि मइ, आज प्रमाण करेसि; २४१ मउड़उ वेगउ मरण छइ, सहुकिण नइ संसारि; 'भांडउ' कहइ राजा निसुणि, कलि माहि बोल ऊगारि, २४२ गढि गो ग्रहिय मरई जिके, तियां रइ मोख दुवार; अवसरि मरइ हमीरदे, नाम रहइ संसार; २४३ अवसरि जे नवि ओलखइ, नीभागीए नरेह; 'भांडउ' कहइ ते भीखिया, लहिसिइ नही वलेह; २४४ लोक सहु तेड़ी करी, पूछई राउ चहुयाण; हुं ठाकुर थे प्रजा थां, वउलावु किणि ठाणि; २४५ हमीरदे थारा अम्हे, सात प्रियां लगु लोक; ईणि वेला जे पुठि द्या, जणणी जाया फोक; २४६ जाजा तु घरि जाह, तु परदेसी पाहुणउ म्हें रहीया गढ मांहि, गढ गाढउ मेल्हां नही; २४७ जाजउ कहइ ति जाउ, जे जाया तिह जण तणा; अरथ विडाणा खाई, साई मेल्हइ सांकड़इ; २४८ जाजउ कहइ (ति) राजा निसुणि, अवसर जेम लहेसि तई मरतइ गढ भाजसइ, कलि मांहि नाम करेसि; २४६ २४२ मरणउ अछइ, २४३ ग्रहि, कलिमाहि, २४५ प्रजथी, २४६ लोक म्हे, द्यु Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003823
Book TitleHammirayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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