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________________ हम्मीरायण प्राणइ गढ लीजइ नवि किमइ, कोई उपाय चितवउ तिमइ; जर रिणि पुरावइ खुदकार, हेलां गढ लीजइ इक सार; १६३ रणथंभ ऊपरि चड्यइ सुरताण, देखइ गढनउ सहु मंडाण ; सिंघासणि सउ बेठउ राउ, रिण हुंतउ जोवै पतिसाह; १६४ महिमासाह कहइ सुणि राउ, मो घातइ आयउ पतिसाह, कहइति डील मारउ सुरताण, कहइति पाड़उ छत्र मंडाणि; १६५ राउ कहइ थारउ साचउ मीर, छत्र पाड़ि इस कहइ हमीर; कहइ पठाण सुणि गोमरा, इणि जीवति किउ भूजिसि धरा; १६६ खांचि बाण तिण मेल्ह्यउ मीरि, सात छत्र तिणि पाड्या तीरि; चिति चमकिउ आपु सुरताण, महिमासाह तणउ ए पराण; १६७ पहिलउ रिण पूरउ लाकड़े, देई आग बाल्यउ तिय भड़े; कटक सहू नइ हुयउ फुरमाण, वेलू नखाउ तिणि ठाणि; १६८ सुथण तणी बांधइ पोटली, मीर मलिक वेलू आणइ भरी; न करइ कोइ भूझ गढ वाल, वेलू आणइ सहि पोटली; १६६ छठ मासि संपूरण भस्यउ, ते देखी लोक मनि डस्य उ कोसीसइ जाइ पहुता हाथ, तुरका तणी समी छइ बाच्छा २०० राय हमीर चिंतातुर हूयउ, रिण पूरयउ दुर्ग हिव गयउ; गढ देवति लही परमाथ, आणी कुंची दीधी हाथि; २०१ राय बारी उघाड़ी ताम, देव माया पाणी वहिया ताम; वहि वेल पाणी सुं गयउ, तेह कोल वलि ठाउ थयउ, २०२ १६३ आणइ हेली २६४ देखी, सिघसरण, हुता, १६५ मिल १९६ पाठण, १६७ मेलउ १६६ भली २०१ चिंतातुउ, २०२ हमीर Jain Educationa International For Personal and Private Use Only २३ www.jainelibrary.org
SR No.003823
Book TitleHammirayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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