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हम्मीरायण
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॥ चौपई॥ भाट नइ तूठउ सुरिताण, घोड़ा अरथ दिवाड़इ ताम ; भाट कहइ आगइ घरि घणा, उचित भंडार अछइ तुम्ह तणा ; १६१ देवां नइ नरवर तणा, उचित न होइ भंडार ; नाल्ह' न लइ कारणि कवणि, हुं तूठउ करतार ; १६२
॥चौपई॥ नाल्ह कहइ कारण सुरताण, तउ विग्रहि मरसी चहुयाण ; भाट मरइ आगलि तिणिवार, इणि कारणि न लीयउ भंडार; १६३
॥ दृहा ।।
नाल्ह कहइ साहिब सुणउ, ज दी मरइ चहुआण ; भाट उचित मांगइ तदि, कहि गयउ निज ठाण ; १६४ राजकुली छत्तीस नइ, चीरी दइ चहुआण ; या वेला छइ तुम्ह तणी, आवउ घणइ पराणि ; १६५
॥ अथ पद्धड़ी छन्द ॥ संदा वंदा दाहिमा जाणि; कछवाहा मेरा मुकिआणं ; बारहड बोडाणा अतिझूझार, वाघेला मिलिया तिह अपार ; १६६ भाटिय गवड तुवर असंख, सुभट सेल चाल्या हसंत ; डाभिय डाडीय अति घणा हूण, डोडीयआण पयाणरूण ; १६७
१६४ ठाम, न्हाल, जदि, १६६ बरहा
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