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________________ हम्मीरायण (गाथा) रचिता सप्त समुद्रा निर्मिता जेन रवि शशि तारा । अविगत अलख अनंतो रहमाणउ हरउ दुरियाई॥ ॥अथ छपद ॥ रे देवगिरि म म जाणि, जुरे जादव किं नरवइ रे गुजरात म म जाणि, कर्ण चालुक न हुयउ रे मंडोवर म म जाणि, जुतई गाढम करि पहियउ रे जलालदीन म म जाणि, जुरे वेसासि जि ग्रहीयउ रे अलावदीन ! हम्मीर यहु, दिढ किमाड आडउ खरउ ; रिणथंभि दुर्ग लगंतड़ा, हिव जाणीयइ पटन्तरउ ; १५६ ॥दोहा ।। भाट कहइ भोलउ किसउ, तूं भूलउ सुरिताण ; गढ रणथंभ हमीरदे, जीपिसि किणिहि विनाणि ; १५७ नवि परणाव डीकरी, नवि आपउ बेऊ मीर ; हाथी गढ आपउ नहीं, इसउ कहइ हम्मीर ; १५८ तुं सरिखा सुरताणसु, करइ विग्रह निसदीस ; हमीरदे कहीयउ इसउ, तउइ न नामउ सीस ; १५६ सउ वरसां नु संचीयउ, धान चोपड़ गढ मांहि ; चहुयाण कहइ इसउ, रामति करि पतिसाह ; १६० २५६ हमीरयउ , १५८ नमवि, न > नवि अडवि, नुहइ - हुय उ गादिम, करि > जि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003823
Book TitleHammirayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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