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हम्मीरायण ए वृतांत राय संभली, मनि हरख्यउ संभरिनउ धणी; 'त्यांह नइ बाह दीयइ हम्मीर, महिमासाह तु म्हारउ वीर; ४६
अंतर किसी वात मत करउ, कुणही थकी रखे तुम्ह डरउ; तिहनइ राय दियइ घर ठाम, ग्रास घणउ वलि अधिकउ मान; ५००
॥ वस्तु ॥
राय पभणइ राय पभणइ सुणउ तुम्हि मीर महिमासाह गाभरू तुम्हे सरणइ आव्या अम्हारइ, बांह बोल तिहनइ दियइ ग्रास घणु नित को दिवाइ कवि 'भांडउ' कहइ इसिउं हरख धरी मन मांहि, रिणथंभुर बसिया जि ते मीर नइ महिमासाहि; ५१
॥ चउपई ॥ बिहु लाख सदा ते लहइ, बीजा ग्रास पार को लहइ; सूरा नइ छइ सगलइ ठाम, विण साहस नवि सीझइ काम; ५२ जेह वात लोके संभली, गयउ महाजन राउल गुनि मिली; पातल पाल्हण जाल्ह(ण) मिल्या, कोल्ह वील्हण देल्हणभिल्या; ५३ तोल्हण मोल्हण लियाहसी, आसड़ पासड़ नइ पदमसी; धांधउ धूधउ नइ धरमसी, वीसल वीरम नइ तेजसी;, ५४ वस्तु वीरम भणइ इम जोडि, प्रथमउ पूनउ पीथल तेड़ि; वीरू धीरू खेतल खीम, भांडउ सादउ डाहउ भीम ; ५५ ४६ हमीर ५० कीसी, ५१ वस्या ५२ जे ५५ पुनउ
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