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हम्मीरायण
मनमांहि चमक्यउ राउ चहुवाण, भला सूर बेऊ पठाण ते लेवा मोकल्या प्रधान, राय हमीर दीयइ बहु मान; ३६ चरणे लागि रह्या सिरनामि, देइ बाह ऊठाड्या ताम; तुम्ह प्राक्रम अम्हे संभल्या, भलु हुवउ ते दरसण मिल्या ४० ॥ दूहा ॥ राय कहइ कारणि कवणि, आव्या एणइ ठामि; कइ सुरताणि जि मोकल्या, कइ तुम्हि घर कइ कामि; न सुरताणि जि मोकल्या, न म्हे घर कइ कामि; कटकविणास घणउ करी, सरणइ आव्या सामि; घणा देस अम्हे फिर्या, राखण कोइ न समत्थ; सवालाख संभरि धणी, भंजि अम्हारी अवस्थ अलुखान जि मंगीयउ, अम्ह तीरइ पंचाध;
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घणा दिवस म्हे ऊलग्या, जेऊ न दीघउ आध ; ४४ ॥ चउपई ॥ अम्हनइ मान हुतउ एतलउ, घरि बइठा लहता कणहलउ; पातिसाह नइ करता सलाम, कटकि उलगता अलुखान ; ४५ इणि वचन दूहविया स्वामि, कालु मलिक मास्यउ तिणि ठामि; कटक मांहि कुलांहल कीया, जग देखंत इहां आवीया; ४६ अम्ह अपराध सहु इम कहीया, राखि राखि इम बोलइ मीया; सरणाई तु कहियइ लोक, राखि अम्हां कि विरद करि फोक ४७ अम्हे ऊलगिस्यां थारा पाय, किसी विमासणि म करिसि राय; मन मांहि कूड़ कपट म म जाणि, अम्ह तुम्ह साखि दिउ रहमाण; ४८ ४५ कणहत उ
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