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उस मूर्ख ने पुत्री न दी तो मैं उसकी पत्नियों तक को छीन लूँगा ।" रानियों के कहने से देवलदेवी आत्मसमर्पण के लिए तैयार भी हुई, किन्तु हम्मीर के लिए यह अपमान असह्य और अस्वीकरणीय था । दुर्ग का शासक बनने का इच्छुक रतिपाल तो चाहता ही यह था । उसने रणमल्ल को भी राजा के विरुद्ध कर दिया। दोनों गढ़ से उतरकर शत्रु से जा मिले। इस सार्वत्रिक कृतघ्नता को देखकर हम्मीर ने मुहम्मदशाह को कहीं सुरक्षित स्थान पर जाने के लिए कहा। मुहम्मदशाह ने किस प्रकार अपने कुटुम्ब का अन्त कर यह वीभत्स दृश्य हम्मीर को दिखाया इसका उल्लेख हम ऊपर कर चुके हैं (देखें हम्मीर महाकाव्य का सार ) । हम्मीर ने अब जौहर किया। उसकी पुत्री और रानियां जहर की चिता में जल मरीं । उसने तमाम धन पद्मसर में फिंकवा दिया। जाजा ने हाथी मार डाले। उसके बाद जाजा को अभिषिक्त कर हम्मीर अपने साथियों सहित बाहर निकला । मयंकर युद्ध करने के बाद उसने स्वयं अपना ' गला काट डाला ।
सुर्जन चरित में जौहर और हम्मीर के अन्तिम युद्ध का वर्णन है ! साथ ही उसमें यह स्पष्ट संकेत है कि जनता दीर्घकालीन गढ़रोध से ऊब चली थी और बहुत से लोग शत्रु से जा मिले थे । " पुरुष परीक्षा में मी रायमल्ल और रामपाल (रतिपाल और रणमल ) का विद्रोह वर्णित है । साथ ही यह भी उसने लिखा है कि वे अदीनराज ( अलाउद्दीन ) से मिले और उससे कहा “दीनराज, आपको कहीं न जाना चाहिये । दुर्ग में अकाल पड़ गया है। हम दोनों दुर्ग के मर्मज्ञ हैं। कल या परसों आपको १. देखें हम्मीर महाकाव्य, सर्ग १३, ९९-२२५
२. ऊपर दिया सुर्जन चरित का सार देखें ।
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