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( १३० ) दुर्ग दिलवा देंगे।” इस पर इम्मीर ने. जाजा और मुहम्मदशाह आदि को अन्यत्र किसी सुरक्षित स्थान में पहुँचाने का वचन दिया । किन्तु वे इसके लिए राजी न हुए।
"मटैरंगीकृतं युद्धं, स्त्रीभिरिष्टो हुताशनः । ।
राज्ञो हम्मीरदेवस्य परार्थ जीवमुज्झतः ॥ . “जब राजा हम्मीरदेव दूसरों के लिए प्राण देने के लिए उद्यत हुआ तो- योद्धाओं ने युद्ध अङ्गीकृत किया, स्त्रियों ने अग्नि ।" राजा युद्ध में लड़ता हुआ मारा गया।
: हम्मीरायण में रणमल्ल और रतिपाल के अलाउद्दीन से मिलने, झूठमूठ अन्नाभाव की कथा फैलाने, जौहर और हम्मीर के अन्तिम युद्ध आदि का वर्णन है । २ . मल्ल के चौदहवें पद्य में सम्भवतः अलाउद्दीन के सुरंग लगा कर दुर्ग का एक भाग तोड़ने का उल्लेख है। साथ ही इन कवित्तों में रणमल्ल के द्रोह, जाजा के अद्वितीय युद्ध और जौहर का भी निर्देश है । ३
इन सब अवतरणों के तुलन से कुछ बातें स्पष्ट हैं। . ... .. १.. घेरे से दुर्ग की स्थिति विषम हो चली थी, तो भी हम्मीर ने लगातार युद्ध किया और मुसल्मानों को गरगचों तथा पाशेबों के प्रयोग से मढ़ न लेने दिया। ..
. .. २, दुर्ग में दुमिक्ष की स्थिति वास्तव में उत्पन्न हो गई थी। उधर बरनी आदि के कथनानुसार मुस्लिम फौज घेरे से तंग हो चुकी थी। अला... १. देखे हम्मीरायण, परिशिष्ट ३।। ..
२. हम्मीरायण की कथा का सार देखें।... ...... ३. पद्यों का सार या हम्पीरायण के परिशिष्ट २ में ये कवित्त देखें।
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