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इसी विजय के बाद मुहम्मदशाह आदि ने जगरापर आक्रमण किया जो उस समय भोज की जागीर में थी । भोज वहाँ न था । किन्तु उन्होने जगरा को लूटा, और भोज के भाई पीथसिंह को सकुटुम्ब पकड़ गये । भोज रोता-धोता दिल्ली के दरबार में
कर रणथंभोर ले
"पहुंचा । १
अब अलाउद्दीन के लिए स्थिति असह्य हो चली थी। उसने बयाना के अक्ता के स्वामी उलुगखाँ को रणथम्भोर जीतने की आज्ञा दी और कड़े के मुक्ता नुसरतखाँ को भी आज्ञा हुई कि वह कड़े की समस्त सेना तथा हिन्दुस्तान की सब फ़ौजों को लेकर उलुगखाँ की सहायता करे। जितनी बड़ी सेना का प्रयोग अलाउद्दीन कर रहा था उससे हम्मीर की शक्ति का कुछ अनुमान लगाया जा सकता है । कोई अन्य राजा होता तो अधीनता स्वीकार कर लेता किन्तु हम्मीर तो मानों किस भिन्न सामग्री से ही बना था ।
इस बार छल से या बल से मुसल्मानी सेना ने फाइन की घाटी पार कर ली और फाइन पर भी अधिकार जमा लिया। नयचन्द्र के कथनानुसार सन्धि की बातचीत के बहाने उलूगखाँ और नुसरत ऐसा हो कि मुसल्मानी सेना की संख्या
२
कर सके ; किन्तु तथ्य शायद यह
- इस बार इतनी अधिक थी कि राजपूतों ने उसका सामना करना उचित न समझा । ऐसी स्थिति में अपने सब साधनों को समूहित कर गढरोध सहना सम्भवतः अधिक हितकर था। साथ ही यह भी तथ्य है कि उलग
१ - वही, पृ० १०, ६४-८८
२ - वही, ११, १९-२४,
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