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( ११ ) मावकलश रचित कृतकर्म चौपई का विवरण भी मुनिजी के विवरण प्रन्थ (अप्रकाशित) में देखा गया है। प्रस्तुत रास की प्रति एवं प्रतिलिपि प्राप्त करने में श्री कस्तूरचंद्रजी कासलीवाल मुनि कान्तिसागरजी क स्वामी नरोत्तमदासजी का सहयोग प्राप्त हुआ, इसलिए हम उनके आमारी हैं।
यद्यपि जयपुर वाली प्रतिलिपि कर्ता ने इसका नाम 'राय हमीर दे चौपई' लिखा है, चौपई छन्द की प्रधानता होने से वह संगत भी है पर मूल ग्रंथकार ने प्रारम्भ व अन्त में 'हम्मीरायण' शब्द का प्रयोग किया है अत: हमने भी इसी नाम को अपनाया है। __ यह रचना ३२६ पद्यों की छोटी सी होने से इसके साथ में हम्मीर सम्बन्धी अन्य फुटकर रचनाओं को देना आवश्यक समझा गया अतः परिशिष्ट नं. १ में प्राकृत पैङ्गलम् के हम्मीर सम्बन्धी ८ पद्य हिन्दी अनुवाद सहित प्राकृत ग्रन्थ परिषद के ग्रन्थाङ्क ५ में प्रकाशित प्राकृत पैंगलम् के नवीन संस्करण से उद्धृत किये गये हैं इसलिए इस ग्रन्थ के सम्पादक डा. भोलाशंकर व्यास और प्राकृत ग्रन्थ परिषद के सञ्चालकों के आभारी हैं।
परिशिष्ट नं० २ में हम्मीर सम्बन्धी २१ कवित्त व दोहे अनूप संस्कृत लाइब्रेरी के राजस्थानी विभाग की प्रति नं० १२६ ( सं० १७९८ लिखित) से प्रतिलिपि करके दिये गए हैं । और उसी लाइब्रेरी की प्रति नं० ९६ में भाट खेम रचित हम्मीर दे कवित्त एवं बात (सं० १७०६ लिखित) प्राप्त हुए उन्हें परिशिष्ट नं० ४ में प्रकाशित किये गए हैं। एदतदर्थ उपयुक्त लाइब्रेरी के व्यवस्थापकगण धन्यवादाह हैं। . . ___ कवित्त नं० ६, १०, १९ में कुछ पाठ त्रुटित है एवम् कहीं कहीं पाठ भी अशुद्ध है, अतः इसकी अन्य पूर्ण व शुद्ध प्रति अपेक्षित है।
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