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________________ ( १० ) विषय में बातचीत होने पर उन्होंने इसे हमीर महाकाव्य के परिशिष्ट में प्रकाशित करने के लिए हमारे करवायी हुई प्रतिलिपि लेली पर वह ग्रन्थ अद्यावधि प्रकाशित नहीं हो पाया। गत वर्ष सादूल राजस्थानी रिसर्च इन्स्टीट्यूट को भारत सरकार एवं राजस्थान सरकार से प्राचीन राजस्थानी प्रन्थ प्रकाशनार्थ आर्थिक सहायता प्राप्त होने पर इस रचना को संस्था की ओर से प्रकाशित करना निश्चित किया गया और उस गुटके को पुनः जयपुर से मँगाकर प्रेसकापी कर ली गई। इसी बीच उदयपुर में मुनि कान्तिसागरजी के संग्रह में इस रास की दो प्रतियां होने का ज्ञात हुआ तो श्रीनरोत्तमदासजी स्वामी को उन कृतियों की प्रतियाँ या नकल भेजने के लिए लिखा गया और उन्होंने जो प्रारम्भ त्रुटित प्रति मुनि जी से मिली उसके आधार से पद्यांक १२७ से ३१६ तक का पाठ सम्पादित करके भेजा। मुनिजी के पास से दूसरी पूर्ण प्रति प्राप्त न होने से जयपुर वाली प्रति को ही मुख्य आधार मानकर प्रकाशित किया जा रहा है। स्वामी जी की प्रतिलिपि का भी इसमें यथास्थान उपयोग कर लिया गया है और पृष्ठ ६७ से ७९ तक उदयपुर की प्रतिके पाठान्तर दिये गए हैं। मांडा व्यास की रचना को अबतक बचाये रखने का श्रेय जैन विद्वानों को है। मुनि कान्तिसागरजी के संग्रह में इसकी जो पूर्ण प्रति का विवरण देखने को मिला उसके अनुसार उस प्रति में भी पर्याप्त पाठभेद है। रचनाकाल व रचयिता के सम्बन्ध में भी पाठ भिन्न है। ... "हम्मीरायण अति रसाल, भावकलश कहि चरित्र रसाल" .. अन्तिम पद्य में भी भांडा की जगह 'भावकलश कहि सुफला फलइ" पाठ है एवं रचना काल पनरहसइ तात्रीसइ जाणि" पाठ है यह प्रति सं० १६०९ की लिखी हुई है। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003823
Book TitleHammirayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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