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यह कहने में कुछ अत्युक्ति न की है कि 'शकेन्द्र शीघ्रता से अपने शिविर में पहुँचा और क्षत्रियों से डरता हुआ अपनी पुरी को लौट गया ।"
अलाउद्दीन के बादशाह होने पर स्थिति फिर बदली । दक्षिण की लूट का अपार धन उसके पास था; उसके पास न सेनाकी कमी थी और न सेनापतियों की । उसकी इच्छा भी यही थी कि समस्त भारत को जीत लिया जाय । इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए उसने सन् १२९८ में गुजरात पर आक्रमण कर सोमनाथ के मन्दिर को नष्ट कर दिया । समस्त हिन्दू संसार क्षुब्ध हुआ, किन्तु कोई इसका प्रतीकार न कर सका । सेना अपनी लूट लेकर दिल्ली लौटती समय सिराणा गांव के निकट पहुँची, तो उसमें कुछ हलचल मची। मुसल्मानी नियम के अनुसार लूट का कुछ भाग लूटनेवाले को मिलता है और कुछ राज्य को ; किन्तु इस अभियान में बहुत सा लूट का सामान, विशेष कर मोती जवाहरात आदि वस्तुएं सैनिकों ने छिपा ली थीं। सुल्तानी सेना के सेनापति उलुगुखां ने सब को लूट का माल वापस करने करने के लिए जब विवश किया तो कमीज़ी मुहम्मद शाह, कामरू, यलचक तथा बर्क, जो पहले मुगुल थे, उलुग्रखां को मारने के लिए तैयार हो गए। रात को वे उलुगखों के तम्बू में जा घुसे, किन्तु भाग्यवशात् लुगखां अपने सोने के स्थान पर न था । वह चुपके से नुसरतखां के पास पहुँचा । नुसरतखां से पराजित होके विद्रोही वहां से भागे । एसामी के कथनानुसार यलचक और बर्क गुजरात के राय कर्ण बघेला के पास भागे और मुहम्मदशाह तथा कामरू ने रणथम्भोर में शरण ग्रहण की ।
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देखें |
१. ऊपर दिए फुतू हुस्सलातीन और तारीखे फिरोजशाही के अवतरण
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