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________________ ( ११६ ) आगे बढ़ गये । भीमसिंह ने जब छीने हुए वाद्य उसने बजा डाले। चारों ओर से मुसल्मानी सैनिक आ घाटी में प्रवेश किया तो मुसल्मानों से इसे अपनी जय का संकेत समझ कर जुटे, और अपने परिमित साथियों के साथ मुसलमानों के विरुद्ध युद्ध करता हुआ भीमसिंह मारा गया । उसके बाद ‘“शकेन्द्र” भी शीघ्रता से अपने शिविर में पहुँचा और क्षत्रियों से डरता हुआ अपने नगर को लौट गया । धर्मसिंह को अंधेपन और कायरता के लिए निन्दित करते हुए, हम्मीर ने मौनव्रत के अन्त में धर्मसिंह को वास्तव में शरीर से अन्धा और पुंस्त्वहीन कर दिया और उसके स्थान पर खड्गग्राही ( खांडाधर ) भोज को नियुक्त किया ।" हम्मीर महाकाव्य की इस कथा का मुसल्मानी तवारीखों में जलालुद्दीन के रणथम्भोर पर आक्रमणों के वर्णन से तुलना करने पर प्रतीत होता है कि सिंह की मृत्यु वास्तव में अलाउद्दीन के विरुद्ध नहीं, अपितु जलालुद्दीन के विरुद्ध लड़कर हुई थी । यही 'सेनानी भीमसिंह' मिफताहुल फुतूह का 'साइणी' था, जो 'हिन्दू नहीं अपितु लोहे का पहाड़ था और जिसके अधीन ४०,००० सैनिकों ने मालवे और गुजरात तक धावे मारे थे कायन की कठिन घाटी में इसी का मुसल्मानों से युद्ध हुआ था । तुगलकनामे और फिरोजशाही के वर्णनों से यह भी सिद्ध है कि अन्ततः इस आक्रमण में जलालुद्दीन को कुछ सफलता ही न मिली ; उसे वहां से सुरक्षित बचकर निकलने में भी आशङ्का होने लगी । और जिस प्रयाण के बारे में बरनी कह सका कि कायन से दूसरे दिन कूच करता हुआ तथा बिना किसी eft के सुल्तान अपनी राजधानी पहुँच गया, उसीके बारे में नयचन्द्र ने १ सर्ग ९, श्लोक ७६-१८८. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003823
Book TitleHammirayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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