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( ११५ ) । (३) तीसरे दिन जलालुद्दीन झायन के राजमहल में उतरा और चौथे दिन उसने झायन के मन्दिरों को नष्ट भ्रष्ट किया। मन्दिर, महल, किला सब उसने तुड़वा डाले (वही) .(४) यहां से बढ़ कर रणथम्भोर को घेर लिया गया और अनेक यंत्र लगाए गए । अन्दर से निकल कर हम्मीर ने सेना पर ऐसा आक्रमण किया कि लोगों के हाथ पैर फूल गए । केवल तुग़लक खान ने कुछ स्थिति संभाली। किन्तु जलालुद्दीन ने रणथम्भोर लेने का विचार सर्वथा छोड़ दिया और झायन से "दूसरे दिन कूच करता हुआ तथा बिना किसी हानि के अपनी राजधानी पहुँच गया” ( तुगलकनामा और तारीखे फिरोजशाही )
हम्मीर महाकाव्य में जलालुद्दीन के समय के इस संघर्ष का वर्णन नहीं है। उसके अनुसार दिग्विजय के बाद पुरोहित विश्वरूप के कहने पर हम्मीर ने काशीवासी एवं अन्य विद्वान् ब्राह्मणों की सहायता से कोटियज्ञ
आरम्म किया। उसने मारि का निवारण और सातों व्यसनों का वर्जन किया । कारागारों से उसने कैदी छोड़े और अनेक प्रकार के दान दिए । फिर पुरोहित के कहने पर उसने एक महीने का व्रत ग्रहण किया। इसी बीच में अलाउद्दीन ने इसे अच्छा अवसर समझ कर उल्लूखान ( उलुगखां ) को रणथम्भोर के विरुद्ध भेजा। (घाटी के ) अन्दर प्रवेश करने में असमर्थ होकर वह वर्णाशा ( बनास ) नदी के किनारे ठहरा। उसने गांव जलाए, फसल नष्ट की। हम्मीर उस समय मौनव्रत में था, इसलिए धर्मसिंह के कहने से सेनानी भीमसिंह ने मुस्लिम फौज पर आक्रमण किया, और उसे हराकर वापस लौटने लगा। उसके बाकी साथी विजय की खुशी में
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