________________
( १०३ )। अलाउद्दीन को भी आसानी से दुर्ग नहीं दिया, उसने अन्त तक अलाउद्दीन का सामना किया और अनेक बार उसके प्रयत्नों को विफल किया। और इसामी का वर्णन तो और भी अधिक उपयोगी है। उसने चारों मुगल बन्धुओं के नाम दिए हैं। नयचन्द्र ने महिमासाहि को काम्बोज कुलान्वय बताया है, क्योंकि उसका नाम कमीजी मुहम्मदशाह था। नयचन्द्र का गाभरूक वास्तव में कामरू है, और विचर और तिचर वास्तव में यलचक तथा बर्क हैं। इनमें से इसामी के कथनानुसार यलचक और वर्क कर्ण के पास चले गए थे। किन्तु यह सम्भव है कि वहाँ अपने को सुरक्षित न समझ कर वे रणथंभोर चले आए हों। उसने उलगखों और हम्मीर को दूत द्वारा उत्तर और प्रत्युत्तर भी दिया है। इसमें हम्मीर के वास्तविक चरित की अच्छी झलक है। उलुगखाँ और अलाउद्दीन के दुर्ग को हस्तगत करने के प्रयत्नां का भी इसमें विशद वर्णन है। जौहर का और हम्मीर की वीर मृत्यु का भी इसामी ने समुचित रूप में उल्लेख किया है। फरिश्ता के वर्णन में भी कुछ ऐसी बातें हैं जो अन्य मुसल्मानी तवारीखों में नहीं हैं।
शिलालख
हम्मीर के दो तिथियुक्त शिलालेख मिले हैं, एक सम्वत् १३४५ का और दूसरा संवत् १३४९ का। पहले में रणथम्भोर शाखा के तीन राजाओं के नाम हैं, वाग्भट, जैत्रसिंह और हम्मीर। जैत्रसिंह ने मण्डप के राजा जयसिंह को तप्त किया, कूर्मराज और कर्करालगिरि के राजा को मारा। झम्फाइथाघाटे में उसने मालवे के राजा के सैकड़ों वीर योद्धाओं को
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org