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________________ ( १०२ ) जिसका नाम 'रन' था। इस तरह ( गढ़ की ) दिवार तक ऊँचाई बनने पर घिरे हुए. आदमियों को हराकर उन्होंने किला ले लिया। हम्मीरदेव अपने जाति भाइयों के साथ मारा गया। मुहम्मद शाह के नेतृत्व में कई लोगों ने विद्रोह किया था और जालोर से रणथम्भोर मान आए थे। ये अधिकांश में मारे गए । मीर मुहम्मद शाह स्वयं घायल होकर पड़ा हुआ था। जब सुल्तान की नजर उस पर पड़ी तो उसने दयाभाव से उससे पूछा, मैं तुम्हारी मरहमपट्टी करवाऊँ और तुम्हें इस खतरनाक हालत से बचा लू तो भविष्य में तुम मेरे से कैसा व्यवहार करोगे ?" उसने उत्तर दिया, “मैं स्वस्थ हुआ तो तुम्हें मार कर मैं हम्मीरदेव के पुत्र को गद्दीनशीन करूँगा।” क्रोधाविष्ट होकर सुल्तान ने उसे हाथी के पैरों के नीचे कुचलवा दिया, किन्तु फौरन ही मुहम्मदशाह की हिम्मत और स्वामिधर्मिता का स्मरण कर उसके मृत शरीर को अच्छी तरह दफनवा दिया। इसके अतिरिक्त उसने उन आदमियों को भी मरवा दिया...जिन्होंने राजा को छोड़ दिया था, जैसे राजा के वजीर रणमल आदि। उसने कहा, "अपने स्वामी के प्रति इनका ऐसा व्यवहार रहा है। ये मेरे प्रति सच्चे कैसे हो सकते हैं ?" __ बरनी के वर्णन से अमीर खुसरों की कुछ जान बूझ कर की हुई गल्तियां दूर की जा सकती हैं। जलालुद्दीन ने न खुशी से रणथंमोर छोडा और न माईन। वह इसके लिए विवश हुआ था। हम्मीर ने १-खजाइनुलफूतूह, जर्नल आफ इण्डियन हिस्ट्री, १६२६, पृ. ३६५ पर तारीखे फरिश्ता से अंग्रेजी में अनूदित अवतरण का हिन्दी अनुवाद । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003823
Book TitleHammirayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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