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( १०१ ) परिश्रम तथा रक्तपात के पश्चात् रणथम्भोर के किले पर अपना अधिकार जमा लिया। राय हम्मीरदेव तथा उन नव मुसलमानों को जो कि गुजरात के विद्रोह के उपरान्त भाग कर उसकी शरण में पहुंच गए थे, हत्या करा दी। रणथम्भोर तथा उस स्थान के आस पास के विलायत ( प्रदेश) एवं वहाँ का सब कुछ उलुगखां के . सुपुर्द कर दिया गया ।
अहमद बिन अब्दुल्लाह सरहिन्दी-इस लेखक की तारीखे । मुबारकशाही में भी हम्मीर पर आक्रमण का वर्णन है। इसके अनुसार हम्मीर के पास १२,००० सवार, अगणित प्यादे तथा प्रसिद्ध हाथी थे।
फरिश्ता :-फरिश्ता ने अपनी तवारीख 'तारीखे फरिश्ता' की रचना सन् १६०६-१६०७ में की। उसका निम्नलिखित वर्णन मी कुछ नवीन तथ्यों से युक्त है :
"नुसरतखों की मृत्यु के बाद हम्मीरदेव ने दो लाख सवारों और पैदलों के साथ गढ़ से निकल कर युद्ध किया। उलुगखाँ घेरा उठाकर झाईन वापस गया और वहाँ से सब हाल बादशाह को लिखा। जब गढरोध एक साल तक या दूसरे कथन के अनुसार तीन साल तक चल चुका था, बादशाह ने चारों ओर से सेना एकत्रित की और उन्हें थैले बाँटे। हर एक ने अपना थेला भरा और उसे खाई में फेंका,
1-खलजीकालीन भारत, पृ० २२-२३, ५९.६५, २- " , पृ० २२३-२२४ ।
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