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तिलपत में अलाउद्दीन के भतीजे अकत खाँ ने उसकी हत्या करने का प्रयत्न किया। 'अकतखाँ के उपद्रव को शान्त करने के पश्चात् अलाउद्दीन लगातार कूच करता हुआ रणथम्भोर की ओर रवाना हुआ
और वहाँ पहुँचकर डेरे डाल दिये ।... ___ "इससे पूर्व किले को घेर रखा गया था। सुल्तान के पहुँचने के उपरान्त इसमें और तेजी हो गई। राज्य के चारों ओर से बेरियाँ लाई गई। उनके थैले बना बना कर सेना में बाँट दिये गये। थैलों में बाल भरी गयी और वे खन्दकों (खाई ) में डाल दिये गये। पाशेब बांधे गये। गरगच लगाये गये। किलेवालों ने मगरबी पत्थरों द्वारा पाशेबों को हानि पहुँचानी प्रारम्भ कर दी। वे किले के ऊपर से आग फेंकते थे और लोग दोनों ओर से मारे जाते थे।" ___इसी बीचमें अलाउद्दीन को बदायूं और अवध में उसके भानजों के विद्रोह की सूचना मिली। अपने अमीरों को उनके विरुद्ध भेजकर सुल्तान ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। दिल्ली में मौला हाजी ने विद्रोह किया। किन्तु वह भी कई राजभक्त सरदारों ने समाप्त कर दिया। दिल्ली के सब समाचार अलाउद्दीन को मिले। “किन्तु उसने रणथम्भोर का किला जीतने का दृढ़ संकल्प कर लिया था। अतः वह अपने स्थान से न हिला और न देहली की ओर प्रस्थान किया। जितनी सेना भी किले. की विजय में लगी हुई थी, वह सब की सब परेशान हो चुकी थी किन्तु सुल्तान अलाउद्दीन के भय और डर से कोई सवार अथवा प्यादा न तो देहली की ओर प्रस्थान कर सकता और न किसी अन्य ओर।" .. "सुल्तान अलाउद्दीन ने हाजी मौला के विद्रोह के उपरान्त बड़े
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