________________
( ɛɛ ) :
करने के लिये अपने प्राण न त्याग दे और किले पर विजय प्राप्त करने के लिये न्यौछावर न हो जाय । साबातों के नीचे, पाशेब बनाने तथा गरगच लगाने में अपनी जान की बलि न दे दें।.... यह कहकर किले को विजय करने के विचार त्याग दिये और दूसरे दिन कूच करता हुआ सुरक्षित तथा बिना किसी हानि के अपनी राजधानी में पहुँच गया ।”
( २ ) अलाउलमुल्क की राय से सहमत होकर अलाउद्दीन ने विश्वविजय के स्थान पर सर्व प्रथम भारत के हिन्दू राज्यों को जीतने का निश्चय किया । ' सर्वप्रथम अलाउद्दीन ने रणथम्भोर पर विजय प्राप्त करना आवश्यक समझा, कारण कि वह देहली के निकट था और देहली के पिथौराराय का नाती हमीरदेव उस किले का स्वामी था । बयाना की अक्ता के स्वामी उलुगखां को उसे विजय करने के लिए भेजा । नुसरतखाँ को जो उस वर्ष कड़े का मुक्ता था, आदेश भेजा कि कड़े की समस्त सेना तथा हिन्दुस्तान की सब अक्ताओं की सेनाओं को लेकर रणथम्भोर की ओर प्रस्थान करे और रणथम्भोर की विजय में उलगखाँ को सहायता प्रदान करे। उलुगखाँ और नुसरतखाँ ने कायन पर अधिकार जमा लिया । रणथम्भोर का किला घेर लिया और किला जीतने में लग गए । एक दिन नुसरतखाँ किले के निकट पाशेब बंधवाने तथा गरगच लगवाने में तल्लीन था, किले के भीतर से मगरबी पत्थर फेंके जा रहे थे । अचानक एक पत्थर नुसरतखाँ को लगा और
तीन दिन उपरान्त उसकी मृत्यु हो गई ।
वह घायल हो गया । दो यह समाचार अलाउद्दीन को मिला तो वह राजसी ठाठ से शहर से बाहर
निकल कर रणथम्भोर की तरफ रवाना हुआ ।"
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org