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' ( १०४ ) पराजित किया। और रणथम्भोर में कैद में डाला। उसका पुत्र हम्मीर था। हम्मीर ने अर्जुन को हराकर मालवे से उसली यशः श्री छीन ली। उसका मन्त्रिमुख्य कटारिया जातीय कायस्थ नरपति था। प्रशस्ति लेखक हम्मीर का पौराणिक बीजादित्य था। दूसरे की तिथि माघ शुक्ला षष्ठी है।
बलवन का शिलालेख सन् १२८८ (सं• १३४५) की राजनीतिक और धामिक स्थिति को समझने के लिए विशेषरूप से उपयोगी है। उसके मूल पाठ का ऐतिहासिक माग निम्नलिखित है :
ॐ “शंवो लम्बोदरो देयादेककालं कलत्रयोः । बुद्धिः सिद्धयोः स्तन-स्पर्श-हेतीरिव चतुर्भुजः ॥ १॥
दद्रु-श्लीपद-कुष्ठ दुष्टवपुषामाधिं विनिघ्नन्नृणां कारुण्येन समीहितं वितनुतां देवः कपालीश्वरः । वामे यस्य चकास्ति चक्रतटिनी पृष्ठे च मन्दाकिनी निर्यत्-केतुमुखापगां-जलवहं कुंडं प्रसिद्धं पुरः ॥ २ ॥
यदंतिके श्राद्धकृता कुलकोटि विमुक्तिदः । अनादिपादपोद्यापि दृश्यते किल शाल्मलिः ॥ ३ ॥
चाहमान-नरेन्द्राणां वंशो विजयतामयं । उपायुज्यत यहडः कलौ गोवृष रक्षणे ॥ ४ ॥ कलिकाल केसरि-कुल-त्रस्यद्-गोचक्र-रक्षणेदक्षाः। .. अभवन्-विजित-विपक्षाः पृथिवीराजादयो भूपाः ॥ ५॥
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