________________
( ६७ )
कर उलुग़खाँ ने सुल्तान से सहायता करने की प्रार्थना की। ( २७२-२७३ ) सुल्तान ने तुरंत हम्मीर पर आक्रमण करने के लिए शहर के बाहर शिबिर लगा दिए। दूसरे दिन वह तिलपट मायन की ओर रवाना हो गया। शाही सेना ने हम्मीर के किले के निकट पहुँचकर किले के चारों ओर शिविर लगा दिए। रात-दिन युद्ध होने लगा। प्रत्येक दिशा में ऊँचे-ऊँचे गरगच' तैयार किए गए। शाही सेना जो मी युक्ति करती, राय उसकी काट कर देता। यदि तुर्क खाइयों को लकड़ी से पाट देते थे तो रात्रि में हिन्दू लकड़ी को जला देते थे। एक वर्ष तक किले को कोई हानि न पहुँच सकी। इसके उपरान्त बादशाह ने एक ऐसी युक्ति की जिसकी काट राय न कर सका । उसने आदेश दिया कि समस्त सैनिक चमड़े तथा कपड़ों के थेले बना कर मिट्टी से भर दें और उन थेलों द्वारा खाई को पाट दें। इस प्रकार किले पर आक्रमण करने लिए मार्ग तैयार हो गया। दो तीन सप्ताह तक घोर युद्ध होता रहा। राय हम्मीर ने जौहर का आयोजन किया। अपनी समस्त बहुमूल्य वस्तुएँ जला डाली। इसके उपरान्त सबसे विदा होकर युद्ध के लिए निकला। फीरोज़ी मुहम्मद शाह और काभरू भी युद्ध के लिए उसके साथ निकले। राय हम्मीर युद्ध करता हुआ मारा गया।"
१ "एक प्रकार का चलता फिरता मचान जिसे ऊँचा करके किले की दीवार के बराबर कर दिया जाता था और किले पर आक्रमण करने में सुविधा होती थी। कभी-कभी इस पर छत भी होती थी, जिससे किले के भीतर से आक्रमण करने वाले इन्हें कोई हानि न पहुंचा सकें।" ( खलज़ी कालीन भारत पृ० ३)
२ खलजी कालीन भारत, पृ० १९५-६, १९८, २०......
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org